भूख आज जमीं पर गुहार कर रही थी। छोटी से एक बच्ची गरीबी में पल रही थी। भूख आज जमीं पर गुहार कर रही थी। छोटी से एक बच्ची गरीबी में पल रही थी।
निढाल शरीर को सहलाती हैं मेरे चाँद की शीतल किरणें निढाल शरीर को सहलाती हैं मेरे चाँद की शीतल किरणें
पिछले कुछ दिनों से उसने और मां ने ठीक से खाया भी नहीं है। पिछले कुछ दिनों से उसने और मां ने ठीक से खाया भी नहीं है।
दो जून की रोटी कोई घी-शक्कर संग खाता है कोई सूखी ही चबाता है। दो जून की रोटी कोई घी-शक्कर संग खाता है कोई सूखी ही चबाता है।
गरीब को वर्तमान की दो जून की रोटी का फ़िक्र है। गरीब को वर्तमान की दो जून की रोटी का फ़िक्र है।
भागते हैं.....? दिन-रात दो वक्त की, रोटी कमाने के लिए। भागते हैं.....? दिन-रात दो वक्त की, रोटी कमाने के लिए।